ब्राह्मण का सपना- moral story in Hindi
brahmin ka Sapna Panchatantra ki naitik kahani Hindi mein
एक बार की बात है, एक बहुत सुन्दर शहर था| उसमें एक कंजूस ब्राह्मण रहता था। एक दिन उसे भिक्षा में जो सत्तू मिला, उसने उसमें से थोड़ा खाकर बाकी का बचा सत्तू एक मटके में भरकर रख दिया।
फिर उसने उस मटके को एक खूंटी से टांग दिया और पास में ही खाट डालकर सो गया। सोते-सोते वो सपनों की एक अनोखी दुनिया में खो गया और विचित्र से विचित्र कल्पनाएं करने लगा।
वो सोचने लगा कि जब शहर में अकाल पड़ेगा, तब तो सत्तू का दाम 100 रुपये हो जाएगा। फिर वह सत्तू बेचकर बकरियां खरीद लेगा।
बाद में इन बकरियों को भी बेचकर वह गाय खरीद लेगा। इसके बाद वह भैंस और घोड़े भी खरीद लेता है।
कंजूस ब्राह्मण अपनी कल्पनाओं की विचित्र दुनिया में पूरी तरह खो चुका था। फिर उसने सोचा कि घोड़ों को अच्छी कीमत पर बेचकर वह खूब सारा सोना खरीद लेगा।
फिर उस सोने को अच्छे दाम पर बेचकर बड़ा-सा घर बनायेंगा। उसकी अच्छी संपत्ति को देखकर कोई भी व्यक्ति अपनी बेटी की शादी उससे करा देगा।
शादी के बाद उसका जो बच्चा होगा, वह उसका नाम मंगल रखेगा। फिर जब उसका बच्चा अपने पैरों पर चलने लगेगा, तो वह दूर से ही उसे खेलते हुए देखकर आनंद लेगा।
जब उसका बच्चा उसे परेशान करता है, तब वह गुस्से में अपनी पत्नी को बोलता है कि तुम बच्चे को ठीक से संभाल भी नहीं सकती हो।
अगर वह घर के काम में व्यस्त होगी और मेरी बात का पालन नहीं करेगी, तब वह गुस्से में उठकर उसके पास जायेगा और उसे पैर से ठोकर मार देगा।
ये सारी बातें सोचते-सोचते ब्राह्मण का पैर ऊपर उठता है और सत्तू से भरे मटके में ठोकर मार देता है, जिससे उसका मटका टूट जाता है।
इस तरह सत्तू से भरे मटके के साथ ही कंजूस ब्राह्मण का सपना भी चकनाचूर हो जाता है।
शिक्षा:
सिर्फ सपने देखने से सफलता नहीं मिलती, इसके लिए मेहनत करना भी जरूरी है।
Brahmin Dream moral story in Hindi
Panchatantra story in Hindi with moral