बूढ़ा बगुल का सबक- Moral story for kids
एक समय की बात है, एक प्यारा सा गांव था जो एक सुंदर भारतीय नदी के किनारे बसा था।
उस गांव में एक बूढ़ा बगुल रहता था। उसके पंखों के पर्वाह किए बिना उसने कई बरसों तक वह नदी के ऊपर उड़कर मछलियों का शिकार किया।
एक दिन, सूरज की किरनों से चमकते हुए वह बूढ़ा बगुल अपने पसंदीदा मछलियों के पीछे निकला।
पानी उस दिन बहुत ही साफ था, और बगुल के आंखों में समय और ज्ञान का प्रभाव था।
वह पानी के नीचे दमकती हुई मछलियों को देख सकता था।
एक तेज और प्रैक्टिस्ड मूवमेंट के साथ, उसने अपनी चोंच में एक मोटी चांदी जैसी मछली पकड़ ली।
जब वह अपने भोजन का आनंद ले रहा था, तो उसने कुछ असामान्य देखा।
नदी के तलाब में, वहां एक केकड़ा था, जिसकी कंखों ने गुजरती हुई पत्थरों को पकड़ने का प्रयास कर रहे थे।
बगुल ने केकड़े के साथ खुद को रोक नहीं पाया और तो उसने चुपचाप वह काम करते हुए देखना शुरू किया।
कौतूहल के कारण, बगुल ने केकड़े से पूछा, “मेरे प्यारे केकड़ा, तुम पत्थरों को पकड़ने का ये काम क्यों कर रहे हो? वे तुम्हारी पेट नहीं भरेंगे।”
केकड़ा, बिना चिंता किए, ने जवाब दिया, “प्यारे बगुल, जैसे तुम नदी में मछलियों का शिकार करते हो, वैसे ही मेरा तरीक़ा है।
पत्थरों को पकड़ना मेरा तरीक़ा है जिससे मैं जीवित रहता हूँ, और मैं इसमें खुशी पाता हूँ।”
बगुल, केकड़े के उत्तर से कुछ रुचाना हुआ, तय कर लिया कि प्राणियों का हर एक अपनी तरह से जीवन बिताने और खुश रहने का तरीका होता है।
बगुल अब कभी भी केकड़े के काम को नकारात्मक नहीं मानता, क्योंकि उसने समझ लिया कि जीवन का तरीका देखने के लिए समर्थन करना महत्वपूर्ण है।
इस तरह की समझ जाकर, बूढ़ा बगुल अपनी पंखों को फैलाकर आसमान में उड़ गया, नदी को पीछे छोड़ दिया।
वह इस सबके साथ एक मोरल को लेकर चला गया कि वह सभी प्राणियों को सिखाएगा – “जीवन के तरीकों की विविधता में, हमारे अस्तित्व की दररोंदगी छिपी है।”
और इस तरह, बूढ़ा बगुल इस समय के अनगिनत सभी प्राणियों को इस अनमोल सिख का एक मेसेंजर बन गया, जो उन्हें समझने और स्वीकार करने के महत्व को सिखाता है एक दुनिया में जिसमें खुशी के लिए विभिन्न रास्ते होते हैं।