गौतम बुद्ध पत्थर की यात्रा -Moral Story in Hindi
एक समय की बात है, एक भारतीय गाँव में, एक अमीर आदमी रहता था जिसके पास सब कुछ था जो एक व्यक्ति चाहता है। उसका नाम रवि था और उसकी संपत्ति ने उसे आराम और सुविधा प्रदान की थी।
पर फिर भी, रवि के दिल में एक अजीब सा खोखलापन और दुःख का अहसास था। सुकून की तलाश में, उसने सुना कि गौतम बुद्ध, एक बुद्धिमान और समझदार गुरु, एक पास वाले गाँव में बस रहे थे। सच्चाई की खोज में, रवि ने खुद को असली खुशी की खोज में प्रस्तुत किया।
रवि ने सुना था कि गौतम बुद्ध की उपासना करने के लिए, एक लंबी तीर्थ यात्रा पर जाना पड़ेगा। कुछ दिनों के सफ़र के बाद, उसने अन्ततःस्थि रास्ते पर आने के बाद गौतम बुद्ध के गाँव पहुँच गया।
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जब रवि गौतम बुद्ध के पास गया, वहां सजे एक पेड़ के नीचे शांति से बैठे थे, उनके चेहरे पर बुद्धिमत्ता की रौशनी चमक रही थी। रवि गौतम बुद्ध के सामक्ष झुका और अपने दुखभरे किस्से का वर्णन किया, बताते हुए कि उसके धन की बावजूद, उसे अपने अन्दर एक विशाल खाली जगह का अहसास होता है।
गौतम बुद्ध रवि की कहानी सुन रहे थे और सम्वेदनशील भाव से सराहते हुए सिर हिलाये। कुछ समय के चुप के बाद, उन्होंने रवि को उनके साथ आने के लिए इशारा किया। वे साथ में चलने लगे, गाँव के अंदर तक।
वहाँ पहुँचते ही, गौतम बुद्ध ने एक छोटा सा पत्थर उठाया और उसे रवि को दिया।
“इस पत्थर को अपने साथ रखो,” गुरु ने सलाह दी, “लेकिन ध्यान रखो कि इसको तब तक न छोड़ो जब तक मैं तुम्हें न कहूँ।”
रवि बड़े खुश हुए, पत्थर को अपने हाथ में मजबूती से पकड़ लिया और गौतम बुद्ध के साथ चलना जारी रखा। जैसे वे घूम रहे थे, गौतम बुद्ध ने रवि को जीवन, खुशी की प्रकृति और दया की महत्वपूर्णता पर बातचीत की।
कुछ समय बाद, उन्हें एक तीखे और खतरनाक पहाड़ी की सड़क पर पहुँच गये। रवि डर गया, वह चाहता था कि वह पत्थर न छोड़े और अपना संतुलन खो दे। लेकिन गौतम बुद्ध ने उसे समझाया, “डरने की कोई बात नहीं, मेरे दोस्त।
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तुम बस आगे की सड़क पर ध्यान केंद्रित करो और अपने आप पर विश्वास रखो। पत्थर सुरक्षित रहेगा।”
रवि ने हिम्मत जुटाई और मुश्किल पथ पर चलना शुरू किया, सावधानी से एक कदम उठते हुए। हर पल बिताते जाते थे, तब रवि ने महसूस किया कि उसका ध्यान पत्थर से यात्रा पर खुद में शिफ्ट हो गया था।
पत्थर उसके चिंताओं और मालिकान्तवस के प्रतीक बन गया, जबकि यात्रा खुद खुशनुमा खोज को दर्शाता था।
जब वे पहाड़ी के चोट पर पहुँचे, गौतम बुद्ध धीरे से रवि को रोका और कहा, “अब, मेरे दोस्त, अपना हाथ खोलो और पत्थर को छोड़ दो।”
रवि ने हाथ खोल दिया और देखा कि पत्थर पहाड़ी के नीचे गिर गया। जैसे वह देखते रहे, रवि को एक अलग तरह का सुकून मह
सूस हुआ।
उस समय रवि समझ गया कि गौतम बुद्ध ने उसे कितना महत्वपूर्ण पाठ दिया था।
“तुम समझ रहे हो, रवि,” गौतम बुद्ध ने समझाया, “असली खुशी वास्तविक संपत्ति या वस्तुओं में नहीं बसती है।
यह हमारे अंदर है, वह लम्हें हैं जिन्हें हम अपनाते हैं, सीखते हैं और दूसरों के प्रति दया दिखाते हैं।”
रवि के आंखों में खुशी के आंसू आ गए, जब उसने गौतम बुद्ध को धन्यवाद दिया। उसने समझ लिया कि धन की अधिकांशता से अधिक असली खुशी को ढूंढ़ने और दुनिया के साथ बांटने की जरूरत है।
इस प्रकार, रवि, पत्थर और गौतम बुद्ध के अनमोल पाठ की कहानी गाँव में फैल गई, एक समय की मोरल स्टोरी के रूप में।
रवि की यात्रा का खुशनुमा अंत हो गया, क्योंकि वह ने धन की अधिकांशता नहीं, बल्कि असली खुशी की खोज में सफलता पाई और दूसरों के साथ इसे बांटने की प्रेरणा प्राप्त की।
Moral Story in Hindi