झांसी की रानी लक्ष्मीबाई। Rani Laxmibai short essay in Hindi

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई- essay in Hindi 

Hindi me nibandh- Jhansi ki rani laxmibai

Here are the depicting a Indian female(Rani Laxmibai) warrior from the 1800s leading a battle for freedom. (1)

भारत की वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई का नाम सुनकर प्रत्येक भारतीय का मस्तक शान से ऊंचा हो जाता है।

राज महलों में वैभवशाली जीवन का परित्याग कर उन्होंने विदेशी शासकों के विरोध तलवार उठाई और लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गई।

वह भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम नायिका थी। उन्होंने ही स्वतंत्रता संग्राम की एक ऐसी ज्योति जलाई जो उनके मरने के बाद भी प्रज्वलित रही।

 

महारानी लक्ष्मी बाई का जन्म सितारा के निकट बाई नामक ग्राम में 1835 ईस्वी में हुआ था। उनका बचपन का नाम मनुबाई था।

केवल 4 वर्ष की अल्पायु में ही वह अपनी मां के प्यार से सदा के लिए वंचित हो गई। उनके पिताजी का नाम मोरोपंत था। 

वह बिठूर के पेशवा के दरबार में काम करते थे। इसलिए बचपन में वह पेशवा के पुत्र नाना साहिब के साथ खेलती थी।

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वह उन्हें मुंह बोली बहिन छबीली के नाम से पुकारते थे। बचपन में घुड़सवारी, कुश्ती, शास्त्र चालन उनके प्रिय खेल थे और तलवार, ढाल, तीर कमान, भाले उनके प्रिय खिलोने थे।

बड़ी होने पर मनुबाई का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव से हुआ। राज महल में आकर वह लक्ष्मीबाई बन गई क्योंकि उनके आने से झांसी की हर तरह से उन्नति हुई।

झांसी की रानी का एक पुत्र हुआ। जिसको पाकर राजा व प्रजा बहुत खुश हुए। लेकिन विधाता को कुछ और ही मंजूर था।

Here show the back view of a fictional Indian female warrior leading a charge for freedom, inspired by the style of the 1800s. (1)

उनके पुत्र की असामायिक मृत्यु हो गई। उसके वियोग से राजा भी स्वर्गवासी हो गए। अब रानी विधवा हो गई। सारे झांसी पर संकट के बादल मंडराने लगे।

अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था कि जो राजा निसंतान मरेगा, उसका राज्य अंग्रेजी राज्य में मिल जाएगा। झांसी की रानी ने एक पुत्र को गोद ले ले लिया था।

यह अंग्रेजों को मंजूर नहीं था। झांसी की रानी ने कहा कि “मैं अपनी झांसी किसी को भी नहीं दूंगी”। अंग्रेजों ने झांसी को प्राप्त करने के लिए युद्ध कर दिया।

महारानी लक्ष्मीबाई ने उसका डटकर मुकाबला किया। जितनी बार भी अंग्रेजी सेना आई वह रानी की सेना के सामने नहीं टिक पा रही थी।

रानी युद्ध का संचालन स्वयं कर रही थी। अंग्रेजी सैनिक रानी के युद्ध कौशल को देखकर दंग रह जाते थे। अंत में कालवी जाकर युद्ध हुआ।

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अंग्रेजों के पास नए अस्त्र-शस्त्र थे। रानी बहुत घायल हो चुकी थी। वह अपने नए घोड़े को लेकर एक साधु की कुटिया में पहुंची।

वहीं उसने अपने प्राण त्याग दिये। रानी चली गई लेकिन वह मरकर भी अमर हो गई और आज भी प्रतेक भारतवासी उन्हें याद रखता है।

Essay in Hindi

Author

  • Krishna Jain

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