गुरु नानक देव जी- essay in Hindi
hindi me nibandh- guru Nanak Dev ji
गुरु नानक देव जी का नाम भारतीय संत, महापुरुषों में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वह मानव मात्र के गुरु थे।
वह सिख पंथ के प्रथम गुरु माने जाते हैं। उनके उपदेश हर मानव के कल्याण के लिए थे। वे दूर-दूर तक भ्रमण करते थे।
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संसार के दुखी जनों को गले लगाकर, वे सबको प्रेम व शांति की राह दिखाते थे। उस समय हर जाति व धर्म का व्यक्ति उनका शिष्य था।वह दिन के सागर थे और शांति के दूत थे।
गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ईस्वी में कार्तिक पूर्णिमा को लाहौर से 15 किलोमीटर दूर तलवंडी नामक ग्राम में हुआ था।
उनको इसलिए ननकाना साहब भी कहा जाता है। नानक बचपन से ही साधु संतों का सत्संग सुनने में रुचि रखते थे।
उनके पिताजी उन्हें पढ़ा लिखा कर बहुत बड़ा आदमी बनाना चाहते थे। लेकिन नानक उससे कई गुना बड़ा बनना चाहते थे। वे सारे संसार के पूजनीय बन गए।
उनके पिताजी उन्हें किसी आजीविका के कार्य में लगाना चाहते थे। वे उन्हें जंगल में पशुओं को चराने के लिए भेजते थे लेकिन वहां वे एकांत पाकर ध्यान मग्न हो जाते थे|
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पशु तितर-बितर होकर उनसे पहले ही घर को लौट आते थे| एक बार व्यापार के उद्देश्य से उनके पिताजी ने उन्हें ₹40 देकर खरा सौदा करने को कहा|
नानक देव जी रुपए लेकर बाजार गए| वहां उन्हें भूखे साधु मिल गए| उन्होंने उन रुपयों से भूखों को भोजन खिला दिया|
घर आकर बता दिया कि आज उन्होंने खरा सौदा कर दिया| उनका दिल घर में नहीं लगता था| उनके पिताजी ने उनकी शादी कर दी|
उसके बाद नानक जी के श्री चंद व लक्ष्मी चंद नामक दो पुत्र भी हुए| परंतु उनका मन दिन प्रतिदिन गृहस्थ से दूर होता जा रहा था|
उनको घर से वैराग्य आने लगा| एक दिन वे घर छोड़कर गृहस्थी से पूर्ण रूपेण विरक्त हो गए| वे साधु संतों के बीच जाकर भजन सत्संग में मस्त रहते थे|
अब वे मंडली बनाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे| लोगों को अपना उपदेश सुनाते थे| इस प्रकार उनके कई शिष्य बन गए|
वे सबको सच्ची राह पर चलने का उपदेश देते थे| जो भी उनके संपर्क में आते थे, वे तुरंत उनके शिष्य बन जाते थे| सन 1539 में नानक देव जी की ज्योति ज्योत समा गए|
उनके उपदेश आज भी हमें रास्ता दिखाते हैं|
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